मखाना कैसे बनता है? खेती, प्रसंस्करण और स्वास्थ्य लाभ की पूरी जानकारी

The Makhana Pond-to-Plate Journey by mera kisan

भारत में उपवास, पूजा-पाठ या फिर स्वास्थ्यवर्धक (Healthy) नाश्ते की बात हो, तो सबसे पहले जिस नाम का स्मरण होता है, वह है मखाना (Fox Nut / Lotus Seed)। यह न सिर्फ़ स्वादिष्ट और हल्का स्नैक है, बल्कि प्रोटीन (Protein), फाइबर (Fiber) और खनिज (Minerals) से भरपूर होने के कारण इसे एक पौष्टिक सुपरफूड (Superfood) भी माना जाता है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह छोटे-छोटे सफेद दाने आपकी थाली तक पहुँचते कैसे हैं? आइए जानते हैं मखाने का सफ़र – तालाबों और झीलों से लेकर थाली तक – और यह हमारी सेहत के लिए इतना लाभकारी क्यों माना जाता है।

Makhana Farming Process

मखाने की खेती कहाँ और कैसे होती है?

 

मखाना (Euryale ferox) कमल जाति का एक जलीय पौधा है, जिसे कई जगहों पर गोरखपुर कमल भी कहा जाता है। इसकी खेती खेतों में नहीं बल्कि तालाबों, झीलों और दलदली जल-क्षेत्रों में होती है।

भारत में मखाने का सबसे बड़ा उत्पादन बिहार में होता है, जहाँ से देशभर के कुल उत्पादन का लगभग 80% प्राप्त होता है। इसके अलावा असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर भी मखाना उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।


खेती और बुवाई की प्रक्रिया

  • अक्टूबर–नवंबर: तालाबों को साफ किया जाता है और जलकुंभी व खरपतवार हटाए जाते हैं।

  • दिसंबर–जनवरी: बीजों की बुवाई की जाती है।

  • फरवरी–मार्च: छोटे पौधे पानी की सतह पर पत्तियों के साथ उगने लगते हैं।

  • अप्रैल–मई: कांटेदार गोल पत्तों से पूरा तालाब ढक जाता है और इस समय सुंदर बैंगनी या सफेद फूल खिलते हैं।

  • मई–जून: पौधों पर स्पंजी और कांटेदार फल लगते हैं, जिनमें प्रत्येक में 70–110 बीज पाए जाते हैं।


बीजों की निकासी और सफाई

जब फल पककर पानी में फटते हैं, तो बीज नीचे तलहटी में बैठ जाते हैं।

  • अगस्त–सितंबर: किसान विशेष छलनी गांधी की मदद से बीज निकालते हैं।

  • इन बीजों को पैरों से मसलकर ऊपर की परत हटाई जाती है।

  • अच्छे से धोकर धूप में सुखाया जाता है।


सुखाने और साइजिंग

  • बीजों को धूप में तब तक सुखाया जाता है जब तक उनका रंग काला से लाल-सुनहरा न हो जाए।

  • छलनी से छानकर छोटे-बड़े दाने अलग किए जाते हैं।

  • इसके बाद इन्हें दोबारा सुखाकर नमी पूरी तरह निकाली जाती है।


भुनाई और मखाना बनने की प्रक्रिया

  • सूखे बीजों को मिट्टी या लोहे की कढ़ाई में तेज़ आँच पर भुना जाता है।

  • भुनते समय बीजों से “फट-फट” की आवाज़ आती है।

  • इसके बाद कुशल श्रमिक लकड़ी के हथौड़े से हल्के वार कर छिलका तोड़ते हैं।

  • बीज का अंदरूनी हिस्सा बाहर आ जाता है और वही दूधिया-सफेद मखाना बनता है।


पैकेजिंग और वितरण

मशीनों से सफाई करने के बाद मखाने को अच्छी तरह पैक किया जाता है ताकि यह ताज़ा और सुरक्षित रहे। इसके बाद यह बाजार और आपकी थाली तक पहुँचता है।


मखाना खाने के फायदे

  1. प्रोटीन और फाइबर से भरपूर – वजन नियंत्रित करने और पाचन सुधारने में सहायक।

  2. खनिजों का खजाना – मैग्नीशियम, पोटैशियम, आयरन और जिंक प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

  3. लो कैलोरी स्नैक – मधुमेह (Diabetes) और हृदय रोग (Heart Disease) से पीड़ित लोगों के लिए सुरक्षित विकल्प।

  4. एंटी-एजिंग और सुंदर त्वचा – एंटीऑक्सीडेंट्स झुर्रियों को कम कर बुढ़ापे की प्रक्रिया धीमी करते हैं।

  5. आयुर्वेदिक लाभ – वात-पित्त संतुलित करने वाला और वीर्यवर्धक माना गया है।

  6. गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद – इसमें मौजूद कैल्शियम और प्रोटीन माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।

  7. व्रत और धार्मिक अनुष्ठानों का प्रिय आहार – ऊर्जा और तृप्ति बनाए रखता है।


निष्कर्ष

मखाना केवल एक साधारण स्नैक नहीं, बल्कि किसानों की मेहनत और प्रकृति के आशीर्वाद से तैयार हुआ एक सुपरफूड है। बीज बोने से लेकर आपकी प्लेट तक पहुँचने में लगभग 9–10 महीने का समय लगता है।

यदि आप भी शुद्ध और ताज़ा फार्म-फ्रेश मखाना खरीदना चाहते हैं, तो Merakisan.com पर उपलब्ध उत्पाद ज़रूर देखें।

Get Enquire about the Price!!

Go back

Your message has been sent

Warning
Warning
Warning
Warning

Warning.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

You may use these <abbr title="HyperText Markup Language">HTML</abbr> tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

*